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ऋषि सुनक से सबक लो | G20 Summit 2023| सोने चांदी के बर्तनों में खाना क्यों खिला रहे हैं Modi| Rishi Sunak | Bharat Mandapam|

 



ऋषि सुनक से सबक लो | G20 Summit 2023| सोने चांदी के बर्तनों में खाना क्यों खिला रहे हैं  Modi| Rishi Sunak | Bharat Mandapam| Rj Raunak

बताओ छोटे बच्चों के डांस से बना दिया देश का बड़ा मुद्दा |

कुछ लोग सनातन धर्म को खत्म करने की बात कर रहे हैं। कुछ  लोग देश का नाम इंडिया से भारत करने की बात पर हाथ की नस काटने की धमकी दे रहे हैं और अब तो कुछ लोगों को देश के फोक डांस से ही प्रॉब्लम हो गयी। जी आप डांस की इन तस्वीरों को देखिए और खुद बताइए की इसमें ऑफेंड होने लायक क्या है?ये एक फोक डांस है जिसे G-20 में मेहमानों के स्वागत के मौके पर कुछ छोटी बच्चियां परफॉर्म कर रही थी। मगर ये जान कर आप अपना माथा पिट लेंगे कि कुछ कब्जेधारियों को इस लोक नृत्य से भी गैस बनने लगी है और वो भी इतनी गैस  की। चाहे तो हर एक कब्जेधारी अपने मुँह से 10-10 खाली सिलिंडर भर सकता हैं। हुआ ये है की G-20 समिट में भाग लेने के लिए  हेड ऑफ स्टेट जो भारत पहुंचे, तो उनके वेलकम के लिए कुछ बच्चों ने लोकनृत्य किया, जिसकी तस्वीरें अभी आप अपनी स्क्रीन पर देख रहे हैं। इन तस्वीरों को शेयर करते हुए यह दावा किया गया है | कि ओमान के हेड ऑफ स्टेट इसे देखकर काफी अनकंफर्टेबल हो गए। ये कहा गया कि हमें पता होना चाहिए जो गेस्ट आ रहा है उसका कल्चर क्या है? क्या वो इस तरह का डांस देखने में से तस्वीरों को शेयर करते हुए यह दावा किया गया है कि ओमान के हेड ऑफ स्टेट इसे देखकर काफी अनकंफर्टेबल हो गए| ये कहा गया कि हमें पता होना चाहिए जो गेस्ट आ रहा है उसका कल्चर होने वाली कौन सी बात है, ये बात सुनते ही मेरे दिमाग में एक साथ कई बातें चलने लगी और हर बात के बेस में एक ही बात है कि इस देश में कुछ लोग अपने कल्चर को लेकर इतने डिफेंसिव क्यों है? वो इस देश की मेजोरिटी से सेक्युलरिज़्म के नाम पर न रिलिजस बिहेव क्यों करवाना चाहते हैं? वो पब्लिक के लिए अपनी धार्मिक आस्था दिखाने तो बुरा क्यों मानते हैं? तो आज के इस ब्लॉग में देश और संस्कृति को नीचा दिखाने वाली इसी सोच का हम पोस्टमॉर्टम करेंगे।नमस्कार दोस्तों जयहिंद, मैं हूँ KRISHNA और आप देख रहे हैं ajkalsamachar.


ऋषि सुनक से सबक लो

दोस्तों भारत आने पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से जब उन। तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा कि उन्हें अपने हिंदू होने पर गर्व है। उन्हें अपनी हिंदुस्तानी रूट्स पर भी गर्व है। इसी वजह से उन्होंने जीवन में काफी कुछ सीखा है। फिर उन्होंने राखी की बात की। हाल ही में बीते जन्माष्टमी पर्व का जिक्र किया और ये भी कहा कि वो भारत आयें हैं तो उनकी कोशिश रहेंगी कि वो किसी मंदिर भी जरूर जाये। ये पहला मौका नहीं है की ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक ने खुलकर अपने हिंदू होने की बात पर गर्व ज़ाहिर किया है। ये वही ऋषि सुनक हैं। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री होते हुए गले में।राम नाम का गमछा बांधकर दिवाली मनाते देखे गए। ये वही ऋषि सुनक है जो गाय के साथ खेलते देखे गए। और जब हम ये सब देखते सुनते हैं तो हमें गर्व भी होता है और थोड़ी शर्म भी आती है। गर्व इस बात का कि दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में से एक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बिना किसी बात की परवाह किए अपने हिंदू होने पर गर्व कर सकता है। ब्रिटेन जैसे क्रिस्चन बहुल देश में बिना किसी ऐजिटेशन के अपने हिंदू त्योहार मना सकता है।कभी अपनी धार्मिक पहचान छिपाने या कम करने की कोशिश नहीं करता और दूसरी तरफ हम हैं और हमारे कुछ लोग हैं जो चाहते हैं कि के नाम पर इस देश की सरकार है, अपनी कल्चरल आईडेंटिटी ना दिखाए तो क्या हुआ जो इस देश में हजारों सालों से सनातन धर्म है? तो क्या हुआ जो इस देश की 80 फीसदी जनता इस धर्म को मानने वाली इन लोगों के हिसाब से सेक्युलर होने का मतलब है की हेड ऑफ स्टेट ये भूल जाये?की वो खुद क्या है? इसलिए उन्हें बहुत बुरा लगता है कि अगर देश का प्रधानमंत्री मंदिर में जाकर पूजा करता है, उन्हें बुरा लगता है। अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री भगवा पहनते है, अरे भैया स्टेट के सेक्युलर होने का मतलब है कि सरकार और राज्य इस बात को लेकर कमिटेड है की हर आदमी को अपना धर्म मानने की इजाजत है। मगर इसका मतलब ये कहाँ से निकाल लिया गया कि खुद उस देश का पीएम या उसके किसी राज्य का सीएम पब्लिकली अपनी कोई पूजा पाठ नहीं कर सकता। अब आप भी कहेंगे ठीक है KRISHNA  भाई ये बात हम भी समझते हैं मगर इसका शुरू की बात से क्या कनेक्शन है? जब आपने फॉर्म की बात की थी सो इससे पहले कि मैं उस कनेक्शन पर सनातन संस्कृति को लेकर डिफेंसिव रहने वाली उस सोच का पोस्टमॉर्टम करूँ, पहले मैं आपको अपनी ओपिनियन के बारे में बता देना चाहता हूँ | ऋषि सुनक हमेशा बेबाकी से अपनी हिंदू पहचान के बारे में बोलते हैं और उस पर गर्व भी करते हैं। मगर हमारे यहाँ कोई सीनियर नेता ऐसा बोल दे तो हम फ़ौरन उसे सांप्रदायिक घोषित कर देते हैं। अब आते हैं उस बात पर कि इसका फोक डांस वाली घटना से क्या कनेक्शन है? तो वहीं दोनों ही बातों में कनेक्शन ये है।इस देश में सेक्युलरिज़्म के नाम पर ऐसी सोच थोपी गई है जो कहती है कि मेजोरिटी लोग अपने धर्म और अपनी संस्कृति को लेकर इतना ना बोले की माइनोरिटी इनसेक्युर हो जाए। आप धर्म की बात बार बार करोगे तो माइनॉरिटी को ऐंग्ग्री सर लगोगे ऋषि सुनक की तरह आप बार बार मत बताओ की मैं हिंदू हूँ और मुझे हिंदू होने पर गर्व है। किसी दूसरे मजहब का हेड ऑफ स्टेट।आये तो ये ध्यान रखो की कहीं आपका कल्चरल डांस देखकर वो तो उनकंफर्टबले नहीं हो जाएगा और सच कहूं तो इसी सोच से मुझे चिढ़ है। अपने धर्म को लेकर इस डिफेंसिव अप्रोच पर मुझे खुंदक आती है। क्यों ना दिखाए हम अपना डांस अपना कल्चर? जब हम दूसरे देशों में जाते हैं तो क्या हम वहा का कल्चर नहीं देखते?और कोई हेड ऑफ स्टेट सर से पांव तक ढकी बच्चियों का डांस देखकर ऑफेंड हो जाये। जो की मुझे डाउट है की वो हुए होंगे तो इसमें हमारी क्या गलती? आखिर क्यों हम अपनी बच्चियों के लोक नृत्य करने पर शर्मिंदा हो? क्या वो ऐसा डान्स कम कपड़ों में अगर रही थी, भद्दे तरीके से कर रही थी? अगर नहीं तो फिर हम इस बात का लोड क्यों ले की कोई क्या सोचेगा? हो सकता है की इंडिया में हम किसी 60 साल की महिला को स्कर्ट में देखकर उनकंफर्टबले  फील कर रहे हो | अगर  हमारे पीएम भी ऐसे माहौल से निकले हैं जहाँ स्कर्ट छोड़ो। घर की महिलाएं जीन्स भी ना पहनती हो तो इसका मतलब ये हुआ क्या कि कल को अमेरिका जाए तो कोई अमेरिकी अधिकारी स्कर्ट पहन कर ना आये जिस दौरान वो अमेरिका में रहे तब तक वहाँ की औरतों को छोटे कपड़े पहनने की छूट ना दी जाए। क्या सच में ऐसा होना चाहिए क्या? और क्या ऐसा हो सकता है? नहीं भाई दुनिया ऐसे वर्क नहीं करती है।और किसी के सामने ये सब बोल भी मत देना वरना अपने खर्चे पर लोग आपको पागलखाने में भर्ती करवा देंगे। हैरानी ये है की जी G-20 सम्मेलन के जरिए जीस तरह हम अपने कल्चर को पूरी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, बजाए उस कोशिश को अप्रीशिएट करने की। उससे जुड़ी छोटी छोटी डिटेल्स समझने के अपने ही कुछ लोग बेवजह ही तिल का ताड़ बनाते हैं और बाद में उस ताड़ के पहाड़ पर खड़े होकर चिल्लाना चाहते हैं।अच्छा एक और चीज़ मैं जानना चाहता हूँ क्या किसी बात का कोई अंत है? 


विदेशी मेहमानों को सोने चांदी के बर्तनों में खाना क्यों खिला रहे हैं 

कुछ लोगों को इस बात का बुरा लगा हुआ है कि हम विदेशी मेहमानों को सोने चांदी के बर्तनों में खाना क्यों खिला रहे हैं जबकि आज भी देश में इतने गरीब है? देखो भैया हम अतिथि देवो भव: वाले लोग हैं। यहाँ अतिथि को देवता समझा जाता है इसलिए जब भी कोई मेहमान हमारे यहाँ आता है तो उसकी सेवा में हम जमीन आसमान एक कर देते हैं। गरीब से गरीब आदमी के घर भी अगर कोई मेहमान आता है तो वो भी घर की सबसे अच्छी सीट पर उसे बिठाता है। खुद वो कैसे भी रूखी सूखी खा लेता हो, लेकिन मेहमान को अपनी औकात से बढ़कर खाना खिलाता है।मेहमानों को इस तरह का आदर सत्कार करना हमारे संस्कारों में हम बढ़ चढ़कर उनकी सेवा करके उनको स्पेशल फील करवाना चाहते हैं ताकि वो खुश होकर जाएं। G-20 के मेहमानों को सोने चांदी के बर्तन में खाना खिलाना भी हमारी उसी सोच को बताता है। ऐसा नहीं है कि हम उनको सोने चांदी के बर्तनों में खिलाकर खुद को अरब के शेखों से बड़ा शेख बताना चाहते हैं।बिलकुल नहीं। ऐसा करके सामने वाले को खास महसूस करवाने के अलावा हमारी कोई भावना नहीं है। और रही बात देश में करोड़ों लोगों के गरीब होने की तो हम ये क्यों भूल जाते हैं कि के टाइम पर जब हालात बुरे थे तो इसी देश ने दुनिया के इतिहास में सबसे ज्यादा 80,करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया ताकि वो भूखे न मरे? कई जगह ये अनाज आज भी मुफ्त दिया जा रहा है। इसके अलावा इसी गरीब जनता के लिए उज्ज्वला योजना अंत्योदय अन्न योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत योजना और गरीब कल्याण योजना जैसी दर्जनों से ज्यादा योजनाएं चलाई जा रही है। बेशक भारत अमेरिका और यूरोप की तरह अमीर देशों में शुमार नहीं है, मगर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है। अमेरिका की आबादी से ज्यादा बढ़ा तो भारत का मिडल क्लास है। बड़े देशों में हम दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था है।तो इसलिए इतना तो अफोर्ड कर सकते हैं ना की घर आए मेहमानों को सोने चांदी के बर्तन में खिला पाए। मगर जैसे कि मैंने कहा ना की जो लोग फोक डांस से लेकर सोने चांदी के बर्तनों को इश्यू बनाते है अंदर से वो भी ये जानते है की ये मुद्दें नहीं है।मगर उनकी भी कोई गलती नहीं है। जैसे कोई बैंक की नौकरी करता है, कोई आई टी कंपनी की नौकरी करता है, कोई स्कूल टीचर होता है, उसी तरह कुछ लोग अपने नफरत की नौकरी करते हैं और जैसे नौकरी में रोज़ काम पे जाना पड़ता है, उसी तरह ये भी जिन लोगों से नफरत करते हैं, उनको गाली देने के लिए रोज़ कोई न कोई बहाना ढूंढ कर ले आते हैं। 


बदला व दिल्ली या बर्बाद दिल्ली आप ने  क्या देखा और सुना 

मगर जैसा मैंने कहा ना ये आप पर डिपेंड करता है की आप देखना क्या चाहते हैं।देखने को तो आप बदली हुई दिल्ली भी देख सकते थे। देखने को तो आप एरपोर्ट से लेकर प्रगति मैदान के भारतीय मंडपम में जगह जगह बिखरी देश की संस्कृति की छाप भी देख सकते थे। देखने को आप भारत मंडपम में रखी 27 फिट लंबी 18 टन वजनी अष्टधातु से बनी नटराज की प्रतिमा भी देख सकते थे, जिसे रिकॉर्ड सात महीने में तैयार किया गया। बताने को तो आप ये भी बता सकते थे कि जिन राधाकृष्णन् और उनकी टीम ने इस मूर्ति को बनाया। उनकी 34 पीढ़ियां चोल साम्राज्य के वक्त से मूर्तियां बनाती आ रही है। 34 पीढ़ियां समझ रहे हैं आप मतलब ना ना करते हुए 2500 सालों से उनके पुरखे ये काम कर रहे हैं क्या दुनिया के इतिहास में ऐसी एक भी मिसाल मिलेगी? मिलती हो तो जरूर बताएगा मगर नहीं ये लोग किसी पॉज़िटिव और गर्व करने लायक बात को छूना भी नहीं चाहते। ना ही उस पर बात करना चाहते हैं ना इन लोगों को मेहमानों के स्वागत से लेकर उनके स्वागत भाषण में भारतीय संस्कृति की छाप दिखाई देती है और ना ही इन लोगों को दिल्ली की दीवारों पर रामायण और महाभारत के कथानक बताती तस्वीरें दिखाई देती ना। इन्हें मेहमानों के स्वागत के लिए खास तौर पर तैयार की गई पीकॉक थाली दिखती है और ना इन्हें मयूर ताल में भारतीय संस्कृति की झलक दिखती है।नाइन है। वैजयंती माला से लेकर रुद्राक्ष माला के जरिये की ये मेहमानों के स्वागत दिखते हैं और ना ही इन्हें मेहमानों के स्वागत में प्रधानमंत्री से लेकर बाकी सारे मंत्रियों के जुड़े हाथ दिखाई देते हैं। वो हाथ क्यों जुड़े हैं, उसके पीछे क्या सोच है? ना ही ये उसे समझना चाहते हैं और ना ही इन्हें G-20 की टैगलाइन में लिखा वसुधैव कुटुंबकम मंत्र दिखता है।इन्हें दिखती है तो हर जगह नेगेटिविटी। अरे क्या जरूरत थी ऐसे आयोजन की? इतने पैसे कहीं और लगा देते। इतने पैसों में तो देशभर में साबुन की 500 फैक्ट्रियां खोल लेते। बीड़ी के 10,000 कारखाने लगा लेते तो क्या हुआ जो हमने इतना बड़ा इवेंट होस्ट कर लिया? मगर उससे क्या मिलेगा? बाकी सब तो ठीक है। पहले ये बताओ चीन का राष्ट्रपति भारत क्यों नहीं आया? क्या मोदी जी उसे होटेल के बजाय धर्मशाला ले जा रहे थे ? क्यों नहीं आया? वो बताओ बताओ बताओ जल्दी बताओ।मतलब एक हाथ में टॉर्च और दूसरे में दूरबीन लेकर व्यवस्था में जीतने कंकड़ ढूंढे जा सकते हैं। ये लोग ढूँढेंगे कभी कभी तो दाल को ही कंकड़ समझकर ये कंकड़ कंकड़ बोलकर चिल्लाने लगेंगे। ना सिर्फ खुद चिल्लायेंगे बल्कि चिल्ला चिल्लाकर पूरी दुनिया को भी ये बताएंगे कि देखो देखो भारत में कितने बुरे हाल हैं। भारत तो बस बर्बाद होने ही वाला है। इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई। जब इतने बड़े मौके पर देश में होने की बजाए विपक्ष का एक बड़ा नेताइसी दौरान दुनिया को ये समझा रहा था बाहर जाकर की कैसे भारत में आज सब कुछ बर्बाद हो रहा है। आप सरकार की बुराई  करो, खुल्लमखुल्ला करो। विपक्ष होने के नाते आपका यही काम है। बीजेपी जब विपक्ष में थी तब यही करती थी, मगर मौका और दस्तूर भी तो समझो ना मेरे भाई इस बात का विरोध कर रहे हैं। उस बात को परख भी तो लो आप बच्चों के फोक डांस को मुद्दा बनाते हो। सोने चांदी के बर्तनों का इश्यू बनाते हो। विदेशों में जाकर एक तरह से ये साबित करने की कोशिश करते हो की जैसे इस देश की पूरी की पूरी माइनोरिटी खतरे में है तो ये सरकार की आलोचना ही नहीं इस देश की बहुसंख्यक आबादी की टॉलरेंस और उनकी सेक्युलर वैल्यू उस पर भी एक सवाल है। आप उसे बदनाम मत करो, ऐसा गुनाह मत करो। अच्छे मौके पर जब अपनी सीट पर खड़े होकर ताली नहीं बजा सकते तो लाउडस्पीकर से बम होने की झूठी अफवाह तो मत फैलाइयेऔर कुछ और नहीं समझ आ रहा है तो कद्रदान सो जाइए। जब मेहमान चले जाएंगे तो आपको उठा दिया जायेगा। ठीक है, खैर, इन सारे मामलों पर आपकी क्या राय है? आपकी क्या ओपिनियन है? जरूर बताएगा। 


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